यूँ ही |
यूँ ही | आज फिर लिखने को जी चाहा यूँ ही सोचने का, देखने का, मिलने का जी चाहा यूँ ही | कलम, दवात, पाटी, मन, चित्त और आप यूँ ही सामंजस्य बैठा लें, एक स्थान सजा लें | चाहे फिर नदिया तीर हो, या हो गृह उछीर स्याही से, अर्थ पूर्ण शब्द सम्बन्ध बना लेते हैं यूँ ही || वैसे तो घर के एक कोने में निवास है आपका, बस कहने को पट, सच ये है कि मेरा एक कोना है आपके अनंत अंतस में | जी चाहा तो कभी आप, कभी मैं पास आयें, रूठ जायें तो फिर ये सब आडम्बर का प्रयोजन क्यूँ ही || आज फिर लिखने को जी चाहा यूँ ही सोचने का, देखने का, मिलने का जी चाहा यूँ ही |