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Showing posts from May, 2012

प्रीत लगाकर क्या पाओगे

प्रीत लगाकर क्या पाओगे  नयन नचेंगे तेरे अंगना, कंगना पहनाकर दीवाना कहलाओगे | मस्ती डूबेगी अश्रु कणों में, चंचलता छुप जाएगी । बस चार दिनों में बचपन की सीढ़ी भी गिर जाएगी  | नयी नवेली सुबह को पाकर युवा पुरुष हो जाओगे । प्रीत लगाकर ------------------------------------ तन मन में ताना तानी होगी,  दर्पण में अपने ही प्रतिबिम्बों से छुट्टी होगी । बिना धृत का दीप जलाकर,  उसी दीप को अपने हांथों शांत करोगे ।   प्रीत लगा कर------------------------------------ प्रीत लगाकर क्या पाओगे  नयन नचेंगे तेरे अंगना, कंगना पहनाकर दीवाना कहलाओगे |

यूँ क्या जीवन जीना राही बिन पहलू के

यूँ क्या जीवन जीना राही बिन पहलू के, दीपक के जलने से क्या बुझ गए अँधेरे इस जीवन के । कृतिम  करुण बस बुझने वाली,      लौ बतलाये कठिन तरीके जीने के । दीपक के जलने से क्या बुझ गए अँधेरे इस जीवन के । कोई प्रेमी प्राणों का तो कोई उस परमेश्वर का,      पर किस प्राणी ने जीना सीखा बिना किसी नसीहत के ।  दीपक के जलने से क्या बुझ गए अँधेरे इस जीवन के ।   बस उसी किरण के पाने की उम्मीद में जगा,      मन का वेग दशमलव के अंको में भागा । रीति , प्रीति के बंधन से उद्दगम होते रस करुणा के। दीपक...