मेरा भाग्य या देश का दुर्भाग्य
मित्रों, काफी दिनों बाद आज एक कहानी के साथ आपसे फिर जुड़ रहा हूँ । दरअसल ये कहानी नही, एक सत्य घटना है जो मेरे साथ घटित हुयी। अपनी दिनचर्या के विपरीत मै सुबह ६:३० बजे उठ कर सरकारी बस पकड़ने भागा और वो तो कहो मेरे भाग्य अच्छे थे जो बस पकड़ पाया। मै अपनी तहसील पहुँच कर बस से उतर गया और रास्ता लिया मामा के घर का। मामा से मिलके हार्दिक प्रशन्नता हुयी, नास्ते - वास्ते के बाद हमने जिला मुख्यालय जाने के लिए बस ली। अभी तक आप सोच रहे होगे कि, कहानी कब शुरू होगी । बस थोडा इंतजार कीजिये घटना की शुरुवात हो चुकी है । दरअसल यह एक घटना या कहानी नहीं है, यह एक समस्या है जो हमने अपनी सरकार के लिए और सरकार ने हमारे लिए खड़ी कर रखी है । दोस्तों बस में मेरा परिचय एक नौजवान कृषक मोहन से हुआ । आपने और हमने आजादी से पहले के जमीदारों के बारे में सुना है परन्तु आपको ये सुनकर हैरानी होगी कि, ये नौजवान आधुनिक भारत के ज़मीदार हैं । इनके पास यही कुछ २५० से ३०० बीघे जमींन है । हमारी बात कुछ ऐसे शुरू होती है - मोहन - इ...