मेरा भाग्य या देश का दुर्भाग्य

मित्रों,
काफी दिनों बाद आज एक कहानी के साथ आपसे फिर जुड़ रहा हूँ ।  दरअसल ये कहानी नही, एक सत्य  घटना है जो मेरे साथ घटित हुयी। अपनी दिनचर्या के विपरीत मै सुबह ६:३० बजे उठ कर सरकारी बस पकड़ने भागा और वो तो कहो मेरे भाग्य अच्छे थे जो बस पकड़ पाया। मै अपनी तहसील पहुँच कर बस से उतर गया और रास्ता लिया मामा के घर का। मामा से मिलके हार्दिक प्रशन्नता हुयी, नास्ते - वास्ते के बाद हमने जिला मुख्यालय जाने के लिए बस ली। अभी तक आप सोच रहे होगे कि,  कहानी कब शुरू होगी । बस थोडा इंतजार कीजिये घटना की शुरुवात हो चुकी है । दरअसल यह एक घटना या कहानी नहीं है, यह एक समस्या है जो हमने अपनी सरकार के लिए और सरकार ने हमारे लिए खड़ी कर रखी है । दोस्तों बस में मेरा परिचय एक नौजवान कृषक मोहन  से  हुआ ।  आपने और हमने आजादी से पहले के जमीदारों के बारे में सुना है परन्तु आपको ये सुनकर हैरानी होगी कि, ये नौजवान आधुनिक भारत के ज़मीदार हैं । इनके पास यही कुछ २५० से ३००  बीघे जमींन है । हमारी बात कुछ ऐसे शुरू  होती है -
मोहन - इस साल फसल  कुछ ठीक नहीं हुयी जहाँ ५ मन का बीघा होता था वहाँ ३ मन का बीघा हो रहा है किसान तो परेशान  है।
मामा - नहीं !  यहाँ तो ठीक हुआ है ।
मोहन - खैर हमें तो कोई फर्क नहीं पड़ता मैं चने की फसल से सब बराबर कर लूँगा ।
धीरे-२ जमीदारों वाले रोब दिखने लगे थे । मैंने यूँ ही पूछ लिया भाईसाहब पानी की व्यवस्था सही नहीं है क्या आपके क्षेत्र में ।
मोहन - पानी का साधन है नहर के रूप में जहाँ हम अपना डीजल इंजन रखकर सिंचाई कर लेते हैं ।
मैंने कहा-  भाईसाहब डीजल तो बहुत महंगा है फिर आपके पास खेत भी बहुत ज्यादा है आपका तो बहुत खर्च हो जाता होगा ।
हमारी बस ख़राब सड़क से गुजर रही थी उसके पुनर्विकास का काम चल रहा था।  कभी सड़क पे,  तो कभी पगडंडी  पे,  हमारी सरकारी बस भागे जा रही थी कहने को तो ये राष्ट्रीय राज मार्ग था परन्तु चलिए रहने  देते हैं । हम वापस अपनी बात पे आते हैं ...
मोहन - नहीं भैया हम तो मिट्टी का तेल इस्तेमाल करते हैं । घर का सरकारी कोटा है , एक महीने गाँव वालों को तेल नहीं देते हैं,  तो एक बार की सिंचाई का  हमारा काम चल जाता है ।
हम भी अन्ना हजारे और केजरीवाल साहब के फैन हमने आव देखा न ताव तपाक से पूंछ बैठे, भाई गाँव वाले कुछ नहीं बोलते !  ये तो गलत है, फिर भी मान लो गाँव वाले नहीं बोलते तो क्या हुआ ,  कभी सरकारी अफसर भी नहीं आते निरीक्षण करने ।
मोहन - कहाँ रहते हो भाई ? लगता है इस क्षेत्र के निवासी नहीं हो तभी ऐसे पूंछ रहे हो।खैर सुनो, गाँव वालो की तो हिम्मत ही नहीं है कि  कोई चूं  भी कर सके। रही बात सरकारी अफसरों की,  तो वहाँ  भी हमारे लोग बैठे हैं । कुछ ऐसी बात आती है तो सम्भाल लेते हैं ।
 तभी जोर का झटका लगा शायद बस फिर नीचे पगडंडी पे उतर गयी थी ।
मामा - बस ६ महीने की बात और है,  फिर ये रोड ४ लेन का बन रहा है सब सही हो जायेगा । पर इन ट्रक वालो पे कौन लगाम कसे जितने बोझ का परमिट बनता हैं उससे २ गुना ज्यादा भार ढोते हैं । रोड ज्यादा से ज्यादा ६ महीने टिकता है।
मोहन (जमीदारी मिजाज में) - ये जो बिल्डर रोड बनवा रहा है उससे मस्त पहचान है मेरी।  मैंने भी अपने ट्रेक्टर  की बात की थी कि, काम में लगा लो ।
मैंने पूंछा - काफी अच्छा पैसा मिलता होगा ।
मोहन - ३०००० महीने मिलता है डीजल भी वही भरवाते हैं । लेकिन गाड़ी की हालत ख़राब हो जाती है । मैंने बात की थी की,  गाड़ी घर पे भी खड़ी रहेगी और १५००० भी जेब में आजायेंगे ।
मैंने कहा-  क्या ऐसा संभव है ? मीठी मुस्कान के साथ मोहन का उत्तर था भैया आप यहाँ के नहीं लगते। ऐसा कौन सा काम है जो नहीं हो सकता।
मुझे तभी याद आया ये आदमी काम का है मैंने तुरंत पूंछा भैया आपकी पहचान का कोई व्यक्ति RTO  ऑफिस में है क्या? मुझे अपना DL( ड्राइविंग लाइसेंस) परमानेंट करवाना है दरअसल हम उसी काम से जिला मुख्यालय जा रहे हैं।
मोहन - हाँ हमारे सारे काम जुबैर भाई कराते हैं । तुम उन्हें मेरा नाम बता देना बाकी लोगो से जो लेते हैं उससे कम में काम करवा देंगे,  बहुत पहुच है उनकी।
मैंने उनका धन्यवाद किया और मामा के साथ बस से उतरने की तयारी करने लगा। क्यों कि  हम पहुचने ही वाले थे और जानकारी के लिए बताना चाहता हूँ कि, ये  सरकारी बस है  तो थोडा पहले से ही तयारी बनानी पड़ती है  क्यों कि, सीट से गेट तक पहुचने में १५  से २० मिनट तो लग ही जाते हैं ।

खैर, बस से उतर कर हमने RTO कार्यालय का रास्ता लिया । ११:३० पूर्वाहन  होने को था, अभी तक कार्यालय के कई कमरों में ताला लटका हुआ था और कर्मचारियों के स्थान पर दलालों का ताँता लगा हुआ था।
क्यों न लगा हो आखिर हमारे देश में जो इतनी बेरोजगारी है। वैसे ये कथन मै खुद नहीं कह रहा, ये मुझे  उन्ही दलालों में से किसी एक ने बताया था। वे कोई और नहीं जुबैर भाई थे जिनका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं। हमने  यही कुछ १० मिनट कार्यालय के इर्द गिर्द काटे ताकि हमें सही कक्ष का पता चल सके कि हमारा कार्य कहाँ  से आरम्भ होगा। हम यह जानकारी नहीं जुटा  सके तो लिपिक वर्ग से पूछा गया - साहब यह DL  बनाने का कार्य कब आरम्भ होगा ।

लिपिक साहब (बिना सिर हिलाए तथा बिना ऊपर देखे)- आज मेरे अलावा यहाँ कोई नहीं आया है, कल आना  आज कुछ नहीं हो सकता।
मैंने(लगभग गिडगिडाते हुए) कहा - नहीं साहब मै बड़े मुश्किल से  टाइम निकाल पाया हूँ और काफी दूर से आया हूँ। कृपया कोई उपाय बताइए।
शायद कुछ दया दिखाते हुए(सिर ऊपर उठाकर)- अभी १ घंटे में बड़े साहब अर्थात RTOसाहब आने वाले हैं उनसे बात करना।
शायद पढ़े लिखे क्रन्तिकारी युवा की भांति मैंने कहा -  यह कोई समय है दफ्तर आने का ? और फिर कोई विज्ञप्ति भी नहीं थी आज  के अखबार में कि कोई सरकारी कार्य नहीं होगा आज। मुझे आज ही अपना कार्य करवाना है जैसे मर्जी वैसे कीजिये।

      यह बात शायद उनके लिए व्यवहारिक नहीं थी, बिना कोई उत्तर के अपने सरकारी काम में लग लग गए उसमे अख़बार पढना भी शामिल होता है।
तभी जुबैर भाई लगभग समझाते हुए - कहाँ चक्कर में पड़े हो इनके मुझे बताओ क्या करवाना है बिना साहब और बिना सरकारी लिपिक के आपका कार्य हो जायेगा।
इतना सब होने के बाद शायद मेरा अंतर्मन भड़क उठा था इस सरकारी रवैये से।  मै गुस्से में था और इस गुस्से का कारण हाल ही में पढ़े गए भ्रष्टाचार पे कुछ लेख थे।  मैंने मन में बैठा लिया था कि मेरा कार्य सम्पूर्ण हो या न हो परन्तु यह सरकारी दफ्तर जरुर सुधरना चाहिए, हालांकि मै अपने लक्ष्य से भटक गया था। कहाँ मै अपना DL बनवाने आया था और अब पर्यावरण का परिवर्तन मुझे सरकारी तंत्र की  खिलाफत करने को विवश कर रहा था। मैंने रोष में मामा से कहा -चलिए हम जिलाधिकारी कार्यालय जायेंगे और इनकी शिकायत करेंगे।
       मामा ने मुझे वहा का रास्ता दिखाया, हमने पहुँचकर वहाँ के लिपिक के सामने हमने अपनी समस्या और उस सरकारी कार्यालय की शिकायत रखी और जिलाधिकारी से मिलवाने की जिद की। मेरी शिकायत पर उनकी प्रतिक्रिया थी - यार कुछ पैसे दे देते आराम से काम हो जाता तो तुम भी लगे हीरो बनने। चलो कोई बात नहीं अब बताओ क्या करना है? मैंने कहा - भाईसाहब आप कुछ मत कीजिये आपसे कुछ होगा भी नहीं आप केवल जिलाधिकारी महोदया का फ़ोन नंबर दे दो। खैर भाई ने महोदया और RTOसाहब दोनों का ही नंबर दिया।  हमने उनका शुक्रिया अदा किया और RTOसाहब को फ़ोन लगा दिया। हेलो, क्या मै RTO साहब से बात कर सकता हूँ ।

जी हाँ बोल  रहा हूँ, बताइये कौन बात कर रहा है? आपको यह नंबर कहाँ से मिला ? (एक साथ कई सारे सवाल आश्चर्य से)

मैंने कहा - मै अभी जिलाधिकारी कार्यालय से बात कर रहा हूँ, और यहीं से मुझे आपका नंबर प्राप्त हुआ है।
सर हम इंजीनियर लोग थोड़ा मतलबी होते हैं हमें अपने काम से मतलब होता है । जब लगा आपके कार्यालय से कोई कार्य नहीं हो सकता तो मैं यहाँ चला आया आपकी शिकायत लेके। अभी तक मैं जिलाधिकारी महोदया से मिला नहीं हूँ ।
महोदया से न मिलने वाली बात का उनपे काफी असर हुआ और उनका कहना था - आप मेरे कार्यालय में बैठ कर मेरा इंतजार करें ।  मैं आपका कार्य करवाता हूँ ।

दोस्तों इस प्रकार मैंने तो अपना DL बनवा लिया क्यूँ कि मेरा भाग्य अच्छा था ।  आशा करता हूँ इसी प्रकार सभी का भाग्य अच्छा हो और किसी को भी इस RTO विभाग से कोई परेशानी न हो।

जय हिन्द !!

   

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