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Showing posts from 2014

गॉंव और विकास - एक नज़र

शहर की भीड़ भाड़ को आत्मसात करने के बाद जब आप गाँव जाते हैं और वहाँ के किसी कार्यक्रम में शरीक होते हैं तो वहाँ पर लोगों के बीच का उत्साह, उमंग और सौहार्द देखकर वहीँ बस जाने का दिल होता है सही कहा न ? आपका पता नहीं पर मेरा तो कुछ ऐसा ही है । दशहरे का उत्सव पहले भी देखा था किन्तु तब दुनियादारी की इतनी समझ न होने से हम पटाखों और फुलझड़ियों में ही अपना उत्सव समझते थे । आज भी वहाँ बच्चों में वही देखा जो मेरे लिए किंचित नया नहीं था; पर वहीं जो हाँथ, हाँथ मिलाने और होंठ हैलो बोलने के आदी से हो गए थे,  उनके लिए झुक कर दो बार प्रणाम की मुद्रा में आना एवं राम राम का उच्चारण करना एक नया अनुभव था । एक या दो बार ही झिझक हुयी थी पर उसके बाद तो जो इंडिया और भारत का अंतर था वो अपने आप ही जाता रहा । सभी परिवारों के किसी न किसी सदस्य का दरवाजे पे बैठना और आते जाते लोगों को श्री, पान, ईलायची से स्वागत करना अपने आप में ग्रामीण परिवेश की सौह्रद्रता को दिखा रहा था । शहरों में ये भाव विरले ही दिखेगा, वो भी किसी रेस्त्रां में पार्टी करते हुए कॉलेज के छात्रों में। यही भाव यदि आप एक उम्र के लोगों में त...

कुछ राजनीतिक सा हो जाये !!

                                                     मित्रो बस अभी- २ होली गयी है । ऐसे में यदि राजनीतिक होली की  बात न की जाये तो थोड़ा अटपटा सा लगता है जबकि ये हर साल न आके ५ सालों बाद खेली  जाती है । मीडिया, रेडियो, अखबार, दीवारें और ऊँचे-२ होर्डिंग सभी चुनावी रंग में दिख रही हैं । यह रंगहीन गन्धहीन होली यही  कुछ २-३ महीने की होती है, जिसमे शब्दों के रंग भरकर अलंकारों से भरी भाषाओं युक्त वांग्य वाण सापेक्ष या परोक्ष रूप से चलाये जाते हैं । लोक लुभावने वादे किये जाते हैं, यदि आपने पहले किये थे और सत्ताधारी हैं तो पूरा होने का दावा करते हैं; वहीं यदि आप विपक्ष में थे तो सब ख़ारिज  कर देते हैं जैसे सत्ताधारी सिर्फ और सिर्फ आराम कर रहे थे । इन सब से दूर यदि धरातल पर परीक्षण किया जाये तो कहीं तो इन वायदों की जानकारी ही नहीं है, तो कहीं थोड़ी बहुत कामयाब होती दिखती हैं । परन्तु ध्यान देने वाली बात ये है की जहाँ इनकी सर्व...

वो नयन मोहनी वीणा से

ये नयन नज़र का जादू है, जो रोज़ सवेरा होता  है । शीत  काल की ठिठुरन हो  या ग्रीष्म काल की आकुलता, बस चन्द्र नयन ही ऐसे हैं, जो चन्दन से शीतल हैं । वो नयन मोहनी वीणा से, सप्त स्वरों के राग लिए, मधुर संगीत में रचे बसे।  जब भी गुस्से में होते हैं, शिव मृदंग की ताल लिये, नट नृत्य अहसास कराते हैं । ये नयन, छंद, नवगीत लिए,  कवि की कल्पित कविता में श्रृंगार चढ़ाया करती हैं । इन नैनों का रसपान किये जग जन  भवंरे इतराते हैं, जिन नयनों में प्रतिबिम्ब देख कर, क्या कुछ नहीं कर देते हैं। उन नैनों रूपी अम्बर में, फिर फिर से डूबना चाहता हूँ। ये कृष्ण नयन चंचल कितने हों, बस टिकते हैं मुझ पे आके। बसंत लहर सी उठती है, बस क्षण भर की ख़ामोशी से । चित्रकार की तूलिका हैं, जग मग जग दृश्य बयां करती । ये मधुमय मदहोश मदमस्त नयन, जब भी देखे, जिसने देखे। एक क्षणभंगुर आंदोलन का अहसास कराया करते हैं । इन नयनों की  खोज कल्पना, मन मंदिर में बसती हैं । मन मंदिर है घर इनका, बस मन मंदिर में रहती हैं। ।...