गॉंव और विकास - एक नज़र
शहर की भीड़ भाड़ को आत्मसात करने के बाद जब आप गाँव जाते हैं और वहाँ के किसी कार्यक्रम में शरीक होते हैं तो वहाँ पर लोगों के बीच का उत्साह, उमंग और सौहार्द देखकर वहीँ बस जाने का दिल होता है सही कहा न ? आपका पता नहीं पर मेरा तो कुछ ऐसा ही है । दशहरे का उत्सव पहले भी देखा था किन्तु तब दुनियादारी की इतनी समझ न होने से हम पटाखों और फुलझड़ियों में ही अपना उत्सव समझते थे । आज भी वहाँ बच्चों में वही देखा जो मेरे लिए किंचित नया नहीं था; पर वहीं जो हाँथ, हाँथ मिलाने और होंठ हैलो बोलने के आदी से हो गए थे, उनके लिए झुक कर दो बार प्रणाम की मुद्रा में आना एवं राम राम का उच्चारण करना एक नया अनुभव था । एक या दो बार ही झिझक हुयी थी पर उसके बाद तो जो इंडिया और भारत का अंतर था वो अपने आप ही जाता रहा । सभी परिवारों के किसी न किसी सदस्य का दरवाजे पे बैठना और आते जाते लोगों को श्री, पान, ईलायची से स्वागत करना अपने आप में ग्रामीण परिवेश की सौह्रद्रता को दिखा रहा था । शहरों में ये भाव विरले ही दिखेगा, वो भी किसी रेस्त्रां में पार्टी करते हुए कॉलेज के छात्रों में। यही भाव यदि आप एक उम्र के लोगों में त...