वो नयन मोहनी वीणा से

ये नयन नज़र का जादू है, जो रोज़ सवेरा होता  है ।
शीत  काल की ठिठुरन हो  या ग्रीष्म काल की आकुलता,
बस चन्द्र नयन ही ऐसे हैं, जो चन्दन से शीतल हैं ।

वो नयन मोहनी वीणा से, सप्त स्वरों के राग लिए, मधुर संगीत में रचे बसे। 
जब भी गुस्से में होते हैं, शिव मृदंग की ताल लिये, नट नृत्य अहसास कराते हैं ।

ये नयन, छंद, नवगीत लिए,  कवि की कल्पित कविता में श्रृंगार चढ़ाया करती हैं ।
इन नैनों का रसपान किये जग जन  भवंरे इतराते हैं,

जिन नयनों में प्रतिबिम्ब देख कर, क्या कुछ नहीं कर देते हैं।
उन नैनों रूपी अम्बर में, फिर फिर से डूबना चाहता हूँ।
ये कृष्ण नयन चंचल कितने हों, बस टिकते हैं मुझ पे आके।

बसंत लहर सी उठती है, बस क्षण भर की ख़ामोशी से ।
चित्रकार की तूलिका हैं, जग मग जग दृश्य बयां करती ।

ये मधुमय मदहोश मदमस्त नयन, जब भी देखे, जिसने देखे।
एक क्षणभंगुर आंदोलन का अहसास कराया करते हैं ।

इन नयनों की  खोज कल्पना, मन मंदिर में बसती हैं ।
मन मंदिर है घर इनका, बस मन मंदिर में रहती हैं। ।
 




Comments

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