गॉंव और विकास - एक नज़र
शहर की भीड़ भाड़ को आत्मसात करने के बाद जब आप गाँव जाते हैं और वहाँ के किसी कार्यक्रम में शरीक होते हैं तो वहाँ पर लोगों के बीच का उत्साह, उमंग और सौहार्द देखकर वहीँ बस जाने का दिल होता है सही कहा न ? आपका पता नहीं पर मेरा तो कुछ ऐसा ही है ।
दशहरे का उत्सव पहले भी देखा था किन्तु तब दुनियादारी की इतनी समझ न होने से हम पटाखों और फुलझड़ियों में ही अपना उत्सव समझते थे । आज भी वहाँ बच्चों में वही देखा जो मेरे लिए किंचित नया नहीं था; पर वहीं जो हाँथ, हाँथ मिलाने और होंठ हैलो बोलने के आदी से हो गए थे, उनके लिए झुक कर दो बार प्रणाम की मुद्रा में आना एवं राम राम का उच्चारण करना एक नया अनुभव था । एक या दो बार ही झिझक हुयी थी पर उसके बाद तो जो इंडिया और भारत का अंतर था वो अपने आप ही जाता रहा । सभी परिवारों के किसी न किसी सदस्य का दरवाजे पे बैठना और आते जाते लोगों को श्री, पान, ईलायची से स्वागत करना अपने आप में ग्रामीण परिवेश की सौह्रद्रता को दिखा रहा था ।
शहरों में ये भाव विरले ही दिखेगा, वो भी किसी रेस्त्रां में पार्टी करते हुए कॉलेज के छात्रों में। यही भाव यदि आप एक उम्र के लोगों में तलाश रहें हैं, जिन्हे विद्वान् लोगों की श्रेणी में रखकर देखा जाता है तो उसके लिए चिराग लेके ढूंढ़ना पड़ेगा । वहीं ये भाव आप ग्रामीण परिवेश में हर घर में देख पाते हैं । यहाँ दिल्ली में भारत का सबसे बड़ा रावण जलाया जाता है और कहा जाता है अपने अंदर की बुराइयों का नाश कीजिये तभी करोड़ो रुपयों के बने रावण के जलाने की सार्थकता है । मुझे तो इसमें एक वजह और भी नजर आती है वो ये है कि जितने पैसे खर्च किये जायेंगे उतनी दूर तक पटाखों की आवाज जाएगी और साथ में सन्देश भी । खैर ये तो मेरा अपना मानना है इसके पीछे की सच्चाई से अभी भी मैं अनभिज्ञ ही हूँ ।
विकास तो सभी जगह हो रहा है चाहे वो गाँव हो या शहर, और होना भी चाहिए आखिरकार सभी की बराबर हिस्सेदारी है इस विकास में, परन्तु देखने वाली बात ये है कि कहीं उन्मादवस हम भारतीय सांस्कृतिक विरासत खो तो नहीं रहे हैं ?
दशहरे का उत्सव पहले भी देखा था किन्तु तब दुनियादारी की इतनी समझ न होने से हम पटाखों और फुलझड़ियों में ही अपना उत्सव समझते थे । आज भी वहाँ बच्चों में वही देखा जो मेरे लिए किंचित नया नहीं था; पर वहीं जो हाँथ, हाँथ मिलाने और होंठ हैलो बोलने के आदी से हो गए थे, उनके लिए झुक कर दो बार प्रणाम की मुद्रा में आना एवं राम राम का उच्चारण करना एक नया अनुभव था । एक या दो बार ही झिझक हुयी थी पर उसके बाद तो जो इंडिया और भारत का अंतर था वो अपने आप ही जाता रहा । सभी परिवारों के किसी न किसी सदस्य का दरवाजे पे बैठना और आते जाते लोगों को श्री, पान, ईलायची से स्वागत करना अपने आप में ग्रामीण परिवेश की सौह्रद्रता को दिखा रहा था ।
शहरों में ये भाव विरले ही दिखेगा, वो भी किसी रेस्त्रां में पार्टी करते हुए कॉलेज के छात्रों में। यही भाव यदि आप एक उम्र के लोगों में तलाश रहें हैं, जिन्हे विद्वान् लोगों की श्रेणी में रखकर देखा जाता है तो उसके लिए चिराग लेके ढूंढ़ना पड़ेगा । वहीं ये भाव आप ग्रामीण परिवेश में हर घर में देख पाते हैं । यहाँ दिल्ली में भारत का सबसे बड़ा रावण जलाया जाता है और कहा जाता है अपने अंदर की बुराइयों का नाश कीजिये तभी करोड़ो रुपयों के बने रावण के जलाने की सार्थकता है । मुझे तो इसमें एक वजह और भी नजर आती है वो ये है कि जितने पैसे खर्च किये जायेंगे उतनी दूर तक पटाखों की आवाज जाएगी और साथ में सन्देश भी । खैर ये तो मेरा अपना मानना है इसके पीछे की सच्चाई से अभी भी मैं अनभिज्ञ ही हूँ ।
विकास तो सभी जगह हो रहा है चाहे वो गाँव हो या शहर, और होना भी चाहिए आखिरकार सभी की बराबर हिस्सेदारी है इस विकास में, परन्तु देखने वाली बात ये है कि कहीं उन्मादवस हम भारतीय सांस्कृतिक विरासत खो तो नहीं रहे हैं ?
You can develop an apprenticeship program for them to improve their expertise. The man-to-machine ratio is the number of machines one personnel runs. There should be an ideal optimum time to dictate which equipment the technical workers operates and at which intervals. Avoid idle occasions for both machines and operators for RING CAMERA maximum productivity.
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