यूँ क्या जीवन जीना राही बिन पहलू के
यूँ क्या जीवन जीना राही बिन पहलू के,
दीपक के जलने से क्या बुझ गए अँधेरे इस जीवन के ।
कृतिम करुण बस बुझने वाली,
लौ बतलाये कठिन तरीके जीने के ।
दीपक के जलने से क्या बुझ गए अँधेरे इस जीवन के ।
कोई प्रेमी प्राणों का तो कोई उस परमेश्वर का,
पर किस प्राणी ने जीना सीखा बिना किसी नसीहत के ।
दीपक के जलने से क्या बुझ गए अँधेरे इस जीवन के ।
बस उसी किरण के पाने की उम्मीद में जगा,
मन का वेग दशमलव के अंको में भागा ।
रीति , प्रीति के बंधन से उद्दगम होते रस करुणा के।
दीपक के जलने से क्या बुझ गए अँधेरे इस जीवन के ।
waah bhai waah..Mast hai..
ReplyDeletethanks sir..:)
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