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माँ

किसी को देखा धूप में, अपने सर का आंचल, उसे उढ़ाये, गर्म लपटों से बचाते, एक एक साल बड़ा कर रही है | आज वर्षों बाद, उसे फिर देखा, थोड़ी झुर्रियां, बाल श्वेत , आँखों की चमक और भाव वही, बार बार आंचल रखती है उसके सर पे, वो हटा देता, आज शायद उसके हाथ चल रहे थे, बोल सकता था, चल सकता था, वो बड़ा हो गया था | माँ में उम्र के आलावा कुछ नहीं बदला | "विद्या चाहिए माँ सरस्वती, वैभव चाहिए माँ लक्ष्मी, बल चाहिए माँ दुर्गा, ये सब चाहिए, अपनी माँ || "

स्वप्न की पूर्णता

कोई तो एक स्वप्न होगा, जो खुली पलकों देखा होगा । कोई तो एक महोत्सव होगा, जो स्वप्न की पूर्णता लिए होगा। कल्पना के शिखर पर मदहोश, गुम हैं, ज्वार से उत्तेजक स्वर हैं, फिर भी, इस अंतर्मन में कुछ तो नम है । इस नम्रता के  मर्म  में, कोई तो एक पुंज होगा। कोई तो एक अर्थ होगा,  कोई  तो एक रंग होगा, कोई  तो एक धर्म होगा, कोई तो एक कर्म  होगा, जो स्वप्न की पूर्णता लिए होगा। अब ये रात भी दिवा सी लगने लगी, कोई तो एक किरण होगी, जो सुबह से चली होगी, प्रकाश से परिपूर्ण होगी। उसी एक किरण में, कहीं तो आरम्भ होगा, जो स्वप्न की पूर्णता लिए होगा।

गॉंव और विकास - एक नज़र

शहर की भीड़ भाड़ को आत्मसात करने के बाद जब आप गाँव जाते हैं और वहाँ के किसी कार्यक्रम में शरीक होते हैं तो वहाँ पर लोगों के बीच का उत्साह, उमंग और सौहार्द देखकर वहीँ बस जाने का दिल होता है सही कहा न ? आपका पता नहीं पर मेरा तो कुछ ऐसा ही है । दशहरे का उत्सव पहले भी देखा था किन्तु तब दुनियादारी की इतनी समझ न होने से हम पटाखों और फुलझड़ियों में ही अपना उत्सव समझते थे । आज भी वहाँ बच्चों में वही देखा जो मेरे लिए किंचित नया नहीं था; पर वहीं जो हाँथ, हाँथ मिलाने और होंठ हैलो बोलने के आदी से हो गए थे,  उनके लिए झुक कर दो बार प्रणाम की मुद्रा में आना एवं राम राम का उच्चारण करना एक नया अनुभव था । एक या दो बार ही झिझक हुयी थी पर उसके बाद तो जो इंडिया और भारत का अंतर था वो अपने आप ही जाता रहा । सभी परिवारों के किसी न किसी सदस्य का दरवाजे पे बैठना और आते जाते लोगों को श्री, पान, ईलायची से स्वागत करना अपने आप में ग्रामीण परिवेश की सौह्रद्रता को दिखा रहा था । शहरों में ये भाव विरले ही दिखेगा, वो भी किसी रेस्त्रां में पार्टी करते हुए कॉलेज के छात्रों में। यही भाव यदि आप एक उम्र के लोगों में त...

कुछ राजनीतिक सा हो जाये !!

                                                     मित्रो बस अभी- २ होली गयी है । ऐसे में यदि राजनीतिक होली की  बात न की जाये तो थोड़ा अटपटा सा लगता है जबकि ये हर साल न आके ५ सालों बाद खेली  जाती है । मीडिया, रेडियो, अखबार, दीवारें और ऊँचे-२ होर्डिंग सभी चुनावी रंग में दिख रही हैं । यह रंगहीन गन्धहीन होली यही  कुछ २-३ महीने की होती है, जिसमे शब्दों के रंग भरकर अलंकारों से भरी भाषाओं युक्त वांग्य वाण सापेक्ष या परोक्ष रूप से चलाये जाते हैं । लोक लुभावने वादे किये जाते हैं, यदि आपने पहले किये थे और सत्ताधारी हैं तो पूरा होने का दावा करते हैं; वहीं यदि आप विपक्ष में थे तो सब ख़ारिज  कर देते हैं जैसे सत्ताधारी सिर्फ और सिर्फ आराम कर रहे थे । इन सब से दूर यदि धरातल पर परीक्षण किया जाये तो कहीं तो इन वायदों की जानकारी ही नहीं है, तो कहीं थोड़ी बहुत कामयाब होती दिखती हैं । परन्तु ध्यान देने वाली बात ये है की जहाँ इनकी सर्व...

वो नयन मोहनी वीणा से

ये नयन नज़र का जादू है, जो रोज़ सवेरा होता  है । शीत  काल की ठिठुरन हो  या ग्रीष्म काल की आकुलता, बस चन्द्र नयन ही ऐसे हैं, जो चन्दन से शीतल हैं । वो नयन मोहनी वीणा से, सप्त स्वरों के राग लिए, मधुर संगीत में रचे बसे।  जब भी गुस्से में होते हैं, शिव मृदंग की ताल लिये, नट नृत्य अहसास कराते हैं । ये नयन, छंद, नवगीत लिए,  कवि की कल्पित कविता में श्रृंगार चढ़ाया करती हैं । इन नैनों का रसपान किये जग जन  भवंरे इतराते हैं, जिन नयनों में प्रतिबिम्ब देख कर, क्या कुछ नहीं कर देते हैं। उन नैनों रूपी अम्बर में, फिर फिर से डूबना चाहता हूँ। ये कृष्ण नयन चंचल कितने हों, बस टिकते हैं मुझ पे आके। बसंत लहर सी उठती है, बस क्षण भर की ख़ामोशी से । चित्रकार की तूलिका हैं, जग मग जग दृश्य बयां करती । ये मधुमय मदहोश मदमस्त नयन, जब भी देखे, जिसने देखे। एक क्षणभंगुर आंदोलन का अहसास कराया करते हैं । इन नयनों की  खोज कल्पना, मन मंदिर में बसती हैं । मन मंदिर है घर इनका, बस मन मंदिर में रहती हैं। ।...

स्वतंत्रता दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें !!

स्वतंत्रता दिवस पर सभी को हार्दिक  शुभकामनायें !! दोस्तों मुझे किसी विद्वान की बात याद आ रही है कि यदि " आपको आज़ाद रहना है तो आज़ादी का मतलब मत भूलो " हमें यह आज़ादी बहुत प्रयासों के उपरांत प्राप्त हुयी है । हमें इसे बचा के रखना होगा अन्यथा अब हमारे पास नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्र शेखर आज़ाद , वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गाँधी और भगत सिंह जैसे नेता तो नहीं हैं, कि फिर से मर के या अनसन करके हमें आजाद करा लेंगे।  माफ़ कीजियेगा परन्तु आज अर्थात 15 अगस्त  जितनी चाक चौबंद व्यवस्था  तो आप शायद ही साल में कभी देख पायें। यदि आपने नहीं देखी  तो देख लीजिये इससे सुनहरा मौका फिर नहीं मिलेगा मेरे कथन का सीधा सा तात्पर्य यह है  कि  आज आप सुरक्षित हैं। बेफ़िक्र  रहिये कही कोई धमाका नहीं हो सकता । जानते हैं क्यों ?? क्यों कि  आज  हम आज़ाद हुए थे  :) क्या ऐसा साल के 365 दिन संभव नहीं है ? आज के दिन गाड़ी से सभी कागज रख के,  हेलमेट लगा के निकलते हैं कि चौराहों पर हमारे पुलिस के जवान खड़े होंगे कहीं चालान ना भरना ...

मेरा भाग्य या देश का दुर्भाग्य

मित्रों, काफी दिनों बाद आज एक कहानी के साथ आपसे फिर जुड़ रहा हूँ ।  दरअसल ये कहानी नही, एक सत्य  घटना है जो मेरे साथ घटित हुयी। अपनी दिनचर्या के विपरीत मै सुबह ६:३० बजे उठ कर सरकारी बस पकड़ने भागा और वो तो कहो मेरे भाग्य अच्छे थे जो बस पकड़ पाया। मै अपनी तहसील पहुँच कर बस से उतर गया और रास्ता लिया मामा के घर का। मामा से मिलके हार्दिक प्रशन्नता हुयी, नास्ते - वास्ते के बाद हमने जिला मुख्यालय जाने के लिए बस ली। अभी तक आप सोच रहे होगे कि,  कहानी कब शुरू होगी । बस थोडा इंतजार कीजिये घटना की शुरुवात हो चुकी है । दरअसल यह एक घटना या कहानी नहीं है, यह एक समस्या है जो हमने अपनी सरकार के लिए और सरकार ने हमारे लिए खड़ी कर रखी है । दोस्तों बस में मेरा परिचय एक नौजवान कृषक मोहन  से  हुआ ।  आपने और हमने आजादी से पहले के जमीदारों के बारे में सुना है परन्तु आपको ये सुनकर हैरानी होगी कि, ये नौजवान आधुनिक भारत के ज़मीदार हैं । इनके पास यही कुछ २५० से ३००  बीघे जमींन है । हमारी बात कुछ ऐसे शुरू  होती है - मोहन - इ...